रघुवंशम्-1.22
श्लोकः
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः ।
गुणा गुणानुबन्धित्वात् तस्य सप्रसवा इव ॥1.22॥
पदविभागः
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघा-विपर्ययः । गुणा गुण-अनुबन्धित्वात् तस्य सप्रसवाः इव ॥
अन्वयः
तस्य ज्ञाने (सति) मौनं, शक्तौ (सत्याम्) क्षमा, त्यागे (सति) श्लाघाविपर्ययः (अत एव तस्य) गुणाः गुण अनुबन्धित्वात् सप्रसवाः इव आसन् ॥1.22॥
वाच्यपरिवर्तनम्
तस्य ज्ञाने (सति) मौनेन, शक्तौ (सत्यां) क्षमया, त्यागे (सति) श्लाघाविपर्ययेण (अभूयत) (अत एव) गुणैः सप्रसवैः इव अभूयत ॥
सरलार्थः
विद्वत्सु वाक्पटुता चपलता, प्रभुषु अक्षमा, दानशीलेषु आत्मश्लाघा प्रायेण दृश्यते, अयं तु राजा पण्डितोऽपि मितवाक्, स्वाम्यपि क्षमावान्, दानशीलोपि श्लाघाशून्यो बभूव ॥
तात्पर्यम्
ज्ञान में मौन, सामर्थ्य होने में क्षमा, दान करने में बड़ाई की इच्छा ना करना, गुणों के संबंध से उसके गुण सहोदर (साथ के जन्म) से थे ॥१.२२॥
[विद्वान् होकर भी मितभाषी था; शक्तिमान् होकर भी सहन भाव युक्त था; दानशीली था पर अपनी प्रशंसा नहीं करता था। (उसके यह) परस्परविरुद्ध गुण (ज्ञान-मितभाषिता; शक्ति-क्षमा; दानगुण-प्रशंसा में अनासक्ति) सहजन्म भाईयों के समान रहते थे।
विद्वान् जन पांडित्य प्रदर्शन के लिए अधिक बातकरते, पराक्रमवान् उद्दंड स्वभावके होते, दानबुद्धि वाले अपने आप की प्रशंसा करते- यह लोकरीति है। उसके विरुद्ध दिलीप की वर्तनी थी। ज्ञानं-मौनं, शक्ति-सहन, दानशीलता-आत्मस्तुति-विमुखता के जैसे विलोम गुण उसमें सहजीवन करते।)
श्लोकः
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः ।
गुणा गुणानुबन्धित्वात् तस्य सप्रसवा इव ॥1.22॥
पदविभागः
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघा-विपर्ययः । गुणा गुण-अनुबन्धित्वात् तस्य सप्रसवाः इव ॥
अन्वयः
तस्य ज्ञाने (सति) मौनं, शक्तौ (सत्याम्) क्षमा, त्यागे (सति) श्लाघाविपर्ययः (अत एव तस्य) गुणाः गुण अनुबन्धित्वात् सप्रसवाः इव आसन् ॥1.22॥
वाच्यपरिवर्तनम्
तस्य ज्ञाने (सति) मौनेन, शक्तौ (सत्यां) क्षमया, त्यागे (सति) श्लाघाविपर्ययेण (अभूयत) (अत एव) गुणैः सप्रसवैः इव अभूयत ॥
सरलार्थः
विद्वत्सु वाक्पटुता चपलता, प्रभुषु अक्षमा, दानशीलेषु आत्मश्लाघा प्रायेण दृश्यते, अयं तु राजा पण्डितोऽपि मितवाक्, स्वाम्यपि क्षमावान्, दानशीलोपि श्लाघाशून्यो बभूव ॥
तात्पर्यम्
ज्ञान में मौन, सामर्थ्य होने में क्षमा, दान करने में बड़ाई की इच्छा ना करना, गुणों के संबंध से उसके गुण सहोदर (साथ के जन्म) से थे ॥१.२२॥
[विद्वान् होकर भी मितभाषी था; शक्तिमान् होकर भी सहन भाव युक्त था; दानशीली था पर अपनी प्रशंसा नहीं करता था। (उसके यह) परस्परविरुद्ध गुण (ज्ञान-मितभाषिता; शक्ति-क्षमा; दानगुण-प्रशंसा में अनासक्ति) सहजन्म भाईयों के समान रहते थे।
विद्वान् जन पांडित्य प्रदर्शन के लिए अधिक बातकरते, पराक्रमवान् उद्दंड स्वभावके होते, दानबुद्धि वाले अपने आप की प्रशंसा करते- यह लोकरीति है। उसके विरुद्ध दिलीप की वर्तनी थी। ज्ञानं-मौनं, शक्ति-सहन, दानशीलता-आत्मस्तुति-विमुखता के जैसे विलोम गुण उसमें सहजीवन करते।)
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