रघुवंशम्-1.26
श्लोकः
दुदोह गां स यज्ञाय सस्याय मघवा दिवम् ।
सम्पद्विनिमयेनोभौ दधतुर्भुवनद्वयम् ॥1.26॥
पदविभागः
दुदोह गां स यज्ञाय सस्याय मघवा दिवम् । सम्पद्-विनिमयेन उभौ दधतुः भुवन-द्वयम् ॥
अन्वयः
सः यज्ञाय गां दुदोह। मघवा सस्याय दिवं (दुदोह)। (एवम्) उभौ (इन्द्रदिलीपौ) सम्पद्विनिमयेन भुवनद्वयं दधतुः ॥1.26॥
वाच्यपरिवर्तनम्
तेन यज्ञाय गौः दुदुहे, मघौना सस्याय द्यौः (दुदुहे) उभाभ्यां सम्पद्विनिमयेन भुवनद्वयं दधे ॥
सरलार्थः
लोकेश्वरः दिलीपः वसुधायाः समुपार्जितैः करैः इन्द्रलोकप्रीतिसाधनं यज्ञं कृत्वा शचीपतिं सन्तोषयामास। स्वर्गपतिः सहस्रलोचनोपि प्रीतः सन् स्वर्गात् पातितैः मेघसलिलैः वसुधायाः धान्यसम्पदं संवर्ध्य पृथ्वीपतिं सन्तोषयामास एवमिन्द्रदिलीपौ उपकारविनिमयेन मर्त्यं स्वर्गं पालयामासतुः ॥
तात्पर्यम्
उसने यज्ञ के निमित्त पृथ्वी को दुहा और इंद्र ने धान्य के निमित्त आकाश को दुहा (अर्थात् वह यज्ञ करता इंद्रजाल बरसाते) एक दूसरे को बदला देकर दोनों ने दोनों लोकों को पाला ॥१.२६॥
[दिलीप के यज्ञों के कारण देवता सन्तुष्ट होते। प्रत्युपकार में इंद्र वर्षा करके सुभिक्षता बनाए रखता।]
श्लोकः
दुदोह गां स यज्ञाय सस्याय मघवा दिवम् ।
सम्पद्विनिमयेनोभौ दधतुर्भुवनद्वयम् ॥1.26॥
पदविभागः
दुदोह गां स यज्ञाय सस्याय मघवा दिवम् । सम्पद्-विनिमयेन उभौ दधतुः भुवन-द्वयम् ॥
अन्वयः
सः यज्ञाय गां दुदोह। मघवा सस्याय दिवं (दुदोह)। (एवम्) उभौ (इन्द्रदिलीपौ) सम्पद्विनिमयेन भुवनद्वयं दधतुः ॥1.26॥
वाच्यपरिवर्तनम्
तेन यज्ञाय गौः दुदुहे, मघौना सस्याय द्यौः (दुदुहे) उभाभ्यां सम्पद्विनिमयेन भुवनद्वयं दधे ॥
सरलार्थः
लोकेश्वरः दिलीपः वसुधायाः समुपार्जितैः करैः इन्द्रलोकप्रीतिसाधनं यज्ञं कृत्वा शचीपतिं सन्तोषयामास। स्वर्गपतिः सहस्रलोचनोपि प्रीतः सन् स्वर्गात् पातितैः मेघसलिलैः वसुधायाः धान्यसम्पदं संवर्ध्य पृथ्वीपतिं सन्तोषयामास एवमिन्द्रदिलीपौ उपकारविनिमयेन मर्त्यं स्वर्गं पालयामासतुः ॥
तात्पर्यम्
उसने यज्ञ के निमित्त पृथ्वी को दुहा और इंद्र ने धान्य के निमित्त आकाश को दुहा (अर्थात् वह यज्ञ करता इंद्रजाल बरसाते) एक दूसरे को बदला देकर दोनों ने दोनों लोकों को पाला ॥१.२६॥
[दिलीप के यज्ञों के कारण देवता सन्तुष्ट होते। प्रत्युपकार में इंद्र वर्षा करके सुभिक्षता बनाए रखता।]
उत्तमं विवरणं, महोदये। धन्यवादा: । काव्यस्य ज्ञानं भविष्यति। संस्कृतज्ञानं च वर्धिष्यति।
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